कंकड़

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कंकड़ संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत- कर्कर, प्राकृत- कक्कर) (स्त्रीलिंग अल्पार्थक- कंकड़ी) (विशेषण- कंकड़ीला)[1]

1. एक खनिज पदार्थ। कंकड़ जो जलाकर चूना बनाया जाता है।

विशेष - यह उत्तरी भारत में पृथ्वी के खोदने से निकलता है। इसमें अधिकतर चूना और चिकनी मिट्टी का अंश पाया जाता है। यह भिन्न-भिन्न प्रकृति का होता है, पर इसमें प्राय: तह या परत नहीं होती। इसकी सतह खुरदरी और नुकीली होती है। यह चार प्रकार का होता है-

(क) तेलिया अर्थात् काले रंग का।

(ख) दुधिया, अर्थात् सफेद रंग का।

(ग) बिछुआा, अर्थात् बहुत खड़बीहड़ और

(घ) छर्रा अर्थात् छोटी-छोटी कंकड़ी।

यह प्रायः सड़क पर कूटा जाता है। छत की गच और दीवार की नींव में भी दिया जाता है।

2. पत्थर का छोटा टुकड़ा।

3. किसी वस्तु का वह कठिन टुकड़ा जो आसानी से न पिस सके। अँकड़ा।

4 सूखा या सेंका हुआ तमाकू जिसे गांजे की तरह पतली चिलम पर रखकर पीते हैं।

5. रवा। डला। जैसे- एक कंकड़ी नमक लेते आओ।

6. जवाहिरात का छोटा अनगढ़ और बेडौल टुकड़ा।

मुहावरा- कंकड़ पत्थर = बेकाम की चीज। कूड़ा करकट।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्द सागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी.ए. (मूल सम्पादक) |प्रकाशक: शंभुनाथ वाजपेयी द्वारा, नागरी मुद्रण वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 716 |

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