कइर - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कदर)[1]
करील।
उदाहरण-
कइ कइराँ हो पारणउ, अइ दिन यूँ ही टाल। - ढोला मारू र दूहा[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 732 |
- ↑ ढोला मारू र दूहा, पृष्ठ 430, सम्पादक रामसिंह, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, द्वितीय संस्करण
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