ककहरा - संज्ञा स्त्रीलिंग [क+क - ह+रा (प्रत्यय)][1]
क से ह तक की वर्णमाला। बरतनिया।
विशेष- बालकों को पढ़ाने के लिये एक प्रकार की कविता होती है, जिसके प्रत्येक चरण के आदि में प्रत्येक वर्ण क्रम से आता है। ऐसी कविताओं में प्रत्येक वर्ण दो बार रखा जाता है, जैसे- क का कमल किरन में पाये। ख खा चाहै खोरि मनावै। - कबीरदास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 734 |
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