कच्छप

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कच्छप - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत) (स्त्रीलिंग कच्छपी)[1]

1. कछुआ।

2. विष्णु के 24 अवतारों में से एक।

उदाहरण- परम रूपमय कच्छप सोई। - रामचरितमानस[2]

3. कुबेर की नवनिधियों में से एक निधि।

4. एक रोग जिसमें तालु में बतौड़ी निकल आती है।

5. एक यंत्र जिससे मद्य खींचा जाता है।

6. कुश्ती का एक पेंच।

7. एक नाग।

8. विश्वामित्र का एक पुत्र।

9. तृन का पेड़।

10. दोहे का एक भेद जिसमें 8 गुरु 32 लघु होते हैं। जैसे- एक छत्र एक मुकुटमणि, सब बरनन पर जोइ। तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोइ। - तुलसी साहब की शब्दावली[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 743 |
  2. रामचरितमानस, 1।247, सम्पादक शम्भुनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  3. तुलसी साहब की शब्दावली (हाथरस वाले, बेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद, 1909, 1911

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