कँठहरिया - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा स्त्रीलिंग (संस्कृत कंठहार का अल्पार्थक रूप)[1]
कंठी।
उदाहरण-
सूर सगुन बाँटि गोकुल में अब निर्गुन को ओसरो।
ताकि छार छार कँठहरिया जो ब्रज जातो दूसरो। - सूरदास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 731 |
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