कँड़हार - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी; प्रान्तीय प्रयोग) संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कर्णधार)[1]
1. केवट। नाविक। माँझी। कर्णधार।
उदाहरण-
(क) जा कहँ अइस होहिं कँड़हारा। - जायसी ग्रंथावली[2]
(ख) चहत पार नहिं कोउ कँड़हारू। - रामचरितमानस[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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