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[[गुजरात]] के समीप एक अंतरीप। कच्छभुज।
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उदाहरण- (क) कुकन कच्छ परोट थट्ट सिंधू सरभंगा। - पृथ्वीराज रासो<ref>पृथ्वीराज रासो, खंड 5, 112।130, सम्पादक मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, [[श्यामसुंदर दास]], [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], प्रथम संस्करण</ref>
उदाहरण- (क) कुकन कच्छ परोट थट्ट सिंधू सरभंगा। - [[पृथ्वीराज रासो]]<ref>पृथ्वीराज रासो, खंड 5, 112।130, सम्पादक मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, [[श्यामसुंदर दास]], [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], प्रथम संस्करण</ref>


(ख) चारण कच्छ देसां जाति कच्छिला कहाया। -  शिखर वंशोत्पत्ति<ref>शिखर वंशोत्पत्ति, पृष्ठ 105, सम्पादक पुरोहित हरिनारायण शर्मा, [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], प्रथम संस्करण, संवत 1985</ref>  
(ख) चारण कच्छ देसां जाति कच्छिला कहाया। -  शिखर वंशोत्पत्ति<ref>शिखर वंशोत्पत्ति, पृष्ठ 105, सम्पादक पुरोहित हरिनारायण शर्मा, [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], प्रथम संस्करण, संवत 1985</ref>  
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5. घोती का वह छोर जिसे दोनों टांगों के बीच से निकालकर पीछे खोंस लेते हैं। लाँग।  
5. घोती का वह छोर जिसे दोनों टांगों के बीच से निकालकर पीछे खोंस लेते हैं। लाँग।  


6. सिक्खों का जाँघिया जो पंच ककार (कंघी, केश, कच्छ, कड़ा और कृपाण) में गिना जाता है।
6. [[सिक्ख|सिक्खों]] का जाँघिया जो पंच ककार (कंघी, केश, कच्छ, कड़ा और कृपाण) में गिना जाता है।


मुहावरा- कच्छ की उखेड़ = [[कुश्ती]] का एक पेंच जिससे पट पड़े हुए को उलटते हैं। इसमें अपने बाएं हाथ को विपक्षी के बाएँ बगल से ले जाकर उसकी गर्दन पर चढ़ाते हैं और दाहिने हाथ को दोनों जाँघों में से ले जाकर उसके पेट के पास लँगोट को पकड़ते हैं और उखेड़ देते हुए गिरा देते हैं। इसका तोड़ यह है- अपनी जो टाँग प्रतिद्वन्द्वी की ओर हो, उसे उसकी दूसरी टाँग में फँसाना अथवा झट घूमकर अपने खुले हाथ से खिलाड़ी गर्दन दबाते हुए छलाँग मारकर गिराना।
मुहावरा- कच्छ की उखेड़ = [[कुश्ती]] का एक पेंच जिससे पट पड़े हुए को उलटते हैं। इसमें अपने बाएं हाथ को विपक्षी के बाएँ बगल से ले जाकर उसकी गर्दन पर चढ़ाते हैं और दाहिने हाथ को दोनों जाँघों में से ले जाकर उसके पेट के पास लँगोट को पकड़ते हैं और उखेड़ देते हुए गिरा देते हैं। इसका तोड़ यह है- अपनी जो टाँग प्रतिद्वन्द्वी की ओर हो, उसे उसकी दूसरी टाँग में फँसाना अथवा झट घूमकर अपने खुले हाथ से खिलाड़ी गर्दन दबाते हुए छलाँग मारकर गिराना।


7. छप्पय का एक भेद जिसमें 53 गुरु, 46 लघु, कुल 99 वर्ण और 142 मात्राएँ होती हैं।
7. [[छप्पय]] का एक भेद जिसमें 53 गुरु, 46 लघु, कुल 99 वर्ण और 142 मात्राएँ होती हैं।


8. तुन का पेड़।
8. तुन का पेड़।

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कच्छ एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कच्छ (बहुविकल्पी)

कच्छ - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत)[1]

1. जलप्राय देश। अनूप देश।

2. नदी आदि के किनारे की भूमि। कछार।

उदाहरण- (क) सीतल मृदुल बालुका स्वच्छ। इत ये हरे हरे तृन कच्छ। - नंददास ग्रंथावली[2]

(ख) आावहु बैठहु भोजन करें। इत ये बच्छ कच्छ में चरैं। - नंददास ग्रंथावली[3]

(ग) गिरि कंदर सरवरह सरित कच्छह घन गुच्छह। - पृथ्वीराज रासो[4]

गुजरात के समीप एक अंतरीप। कच्छभुज।

उदाहरण- (क) कुकन कच्छ परोट थट्ट सिंधू सरभंगा। - पृथ्वीराज रासो[5]

(ख) चारण कच्छ देसां जाति कच्छिला कहाया। - शिखर वंशोत्पत्ति[6]

4. कच्छ देश का घोड़ा

5. घोती का वह छोर जिसे दोनों टांगों के बीच से निकालकर पीछे खोंस लेते हैं। लाँग।

6. सिक्खों का जाँघिया जो पंच ककार (कंघी, केश, कच्छ, कड़ा और कृपाण) में गिना जाता है।

मुहावरा- कच्छ की उखेड़ = कुश्ती का एक पेंच जिससे पट पड़े हुए को उलटते हैं। इसमें अपने बाएं हाथ को विपक्षी के बाएँ बगल से ले जाकर उसकी गर्दन पर चढ़ाते हैं और दाहिने हाथ को दोनों जाँघों में से ले जाकर उसके पेट के पास लँगोट को पकड़ते हैं और उखेड़ देते हुए गिरा देते हैं। इसका तोड़ यह है- अपनी जो टाँग प्रतिद्वन्द्वी की ओर हो, उसे उसकी दूसरी टाँग में फँसाना अथवा झट घूमकर अपने खुले हाथ से खिलाड़ी गर्दन दबाते हुए छलाँग मारकर गिराना।

7. छप्पय का एक भेद जिसमें 53 गुरु, 46 लघु, कुल 99 वर्ण और 142 मात्राएँ होती हैं।

8. तुन का पेड़।

उदाहरण- (क) राम प्रताप हुतासन कच्छ विपच्छ सभीर समीर दुलारो। - तुलसी साहब की शब्दावली[7]

(ख) हरी के अतिरिक्त बबूल, कच्छ की छाल, धावड़ा के पत्ते आदि उपयोगी चीजें यहाँ काफ़ी पाई जाती हैं। - शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ[8]


कच्छ - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कच्छप)

कछुआ।

उदाहरण- नहिं तब मच्छ कच्छ बाराहा। - कबीर श.


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 742 |
  2. नंददास ग्रंथावली, पृष्ठ 264, सम्पादक ब्रजरत्नदास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  3. नंददास ग्रंथावली, पृष्ठ 274, सम्पादक ब्रजरत्नदास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  4. पृथ्वीराज रासो, खंड 5, 6।102, सम्पादक मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, श्यामसुंदर दास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  5. पृथ्वीराज रासो, खंड 5, 112।130, सम्पादक मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, श्यामसुंदर दास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  6. शिखर वंशोत्पत्ति, पृष्ठ 105, सम्पादक पुरोहित हरिनारायण शर्मा, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण, संवत 1985
  7. तुलसी साहब की शब्दावली (हाथरस वाले, बेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद, 1909, 1911
  8. शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ, पृष्ठ 14, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन

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