"कइ": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(''''कइ''' - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) प्रत्यय (हिन्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
2. को। के लिये।
2. को। के लिये।


उदाहरण-
उदाहरण- तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा। - [[रामचरितमानस]]<ref>[[रामचरितमानस]], 2।23, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], प्रथम संस्करण</ref>


तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा। - [[रामचरितमानस]]<ref>[[रामचरितमानस]], 2।23, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], प्रथम संस्करण</ref>
 
'''कई''' - [[विशेषण]] ([[संस्कृत]] कति, प्राकृत कइ
 
1. कितनी।
 
उदाहरण- जनम लाभ कइ अवधि अधाई। - मानस
 
'''कई''' - (काव्य प्रयोग, पुरानी [[हिन्दी]]) क्रिया विशेषण ([[संस्कृत]] कदा, प्राकृत कया, काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी, प्रान्तीय प्रयोग 'कब')
 
कब।
उदाहरण- कई परणै रुषमणी किसान।<ref>वेलि., पृष्ठ 198</ref>
 
'''कई''' - अव्यय (फ़ारसी कि)
 
या। अथवा।
 
उदाहरण- जइ तूँ ढोला नावियउ कइ फागुण कइ चेत्रि। - ढोला मारू र दूहा<ref>ढोला मारू र दूहा, 146, सम्पादक रामसिंह, [[नागरी प्रचारिणी सभा]], [[काशी]], द्वितीय संस्करण</ref>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

10:35, 26 अक्टूबर 2021 का अवतरण

कइ - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) प्रत्यय (हिन्दी की)[1]

1. की।

उदाहरण-

शोभा दशरथ भवन कइ, को कवि बरनै पार। - रामचरितमानस[2]

2. को। के लिये।

उदाहरण- तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा। - रामचरितमानस[3]


कई - विशेषण (संस्कृत कति, प्राकृत कइ

1. कितनी।

उदाहरण- जनम लाभ कइ अवधि अधाई। - मानस

कई - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) क्रिया विशेषण (संस्कृत कदा, प्राकृत कया, काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी, प्रान्तीय प्रयोग 'कब')

कब। उदाहरण- कई परणै रुषमणी किसान।[4]

कई - अव्यय (फ़ारसी कि)

या। अथवा।

उदाहरण- जइ तूँ ढोला नावियउ कइ फागुण कइ चेत्रि। - ढोला मारू र दूहा[5]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 732 |
  2. रामचरितमानस, 1।297, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  3. रामचरितमानस, 2।23, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  4. वेलि., पृष्ठ 198
  5. ढोला मारू र दूहा, 146, सम्पादक रामसिंह, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, द्वितीय संस्करण

संबंधित लेख