कंगाली

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कंगाली - संज्ञा स्त्रीलिंग (हिन्दी कंगाल)[1]

निर्धनता। दरिद्रता। गरीबी।

मुहावरा

'कंगाली में घाटा गीला होना' = प्रभाव की दशा में और अधिक संकट पड़ना। निर्धनता में घोर अभाव का अनुभव करना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्द सागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी.ए. (मूल सम्पादक) |प्रकाशक: शंभुनाथ वाजपेयी द्वारा, नागरी मुद्रण वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 718 |

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