कंद
कंद - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत)[1]
1. वह जड़ जो गूदेदार और बिना रेशे की हो। जैसे- सूरन, मूली, शकरकंद इत्यादि।
यौगिक- जमीकंद। शकरकंद। बिलारीकंद।
2. सूरन। ओल। काँद।
उदाहरण- चार सवा सेर कंद मँगाओ। आठ अंश नरियर लै आभो। कबीर सा०, पृ० ५४९ ।
3. बादल। घन।
उदाहरण- यज्ञोपवीत विचित्र हेममय मुक्तामाल उरसि मोहि भाई। कंद तड़ित बिच ज्यों सुरपति धनु निकट बलाक पाँति चलि आई। - तुलसी[2]
यौगिक- आनंदकंद।
4. तेरह अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार यगण और अंत में एक लघु वर्ण होता है (य य य य ल)। जैसे- हरे राम हे राम हे राम हे राम। करो मो हिये में सदा आपनो धाम। - शब्द
5. छप्पय छंद के 71 भेदों में से एक, जिसमें 42 गुरु, 68 लघु, 110 वर्ण और 152 मात्राएं अथवा 42 गुरु, 64 लघु, 106 वर्ण और 148 मात्राएँ होती हैं।
6. योनि का एक रोग जिसमें बलौरी की तरह गाँठ बाहर निकल प्राती है।
7. शोथ। सूजन[3]।
8. गाँठ[4]।
9. लहसुन[5]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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