कच्चा नील

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 7 नवम्बर 2021 का अवतरण (''''कच्चा नील''' - संज्ञा पुल्लिंग (हिन्दी कच्चा+नी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

कच्चा नील - संज्ञा पुल्लिंग (हिन्दी कच्चा+नील)[1]

एक प्रकार का नील। नीलबरी।

विशेष- कारखाने में मथाई के बाद हौज में परास का गोंद मिलाकर छोड़ दिया जाता है। जब वह नीचे जम जाता है, तब ऊपर का पानी हौज के किनारे के छेद से निकाल दिया जाता है। पानी के निकल जाने पर नीचे के गड्डे में नील के जमे हुए माँठ या कीचड़ को कपड़े में बाँधकर रातभर लटकाते हैं। सबेरे उसे खोलकर राख पर धूप में फैला देते हैं। सूखने पर इसी को कच्चा नील या नीलबरी कहते हैं। इसमें पक्के नील से कम मेहनत लगती है। इसी से यह सस्ता बिकता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 741 |

संबंधित लेख